संतोष/संतुष्टि, इस नश्वर जीवन को कम दुखद बनाने के लिए बहुत जरुरी है। सोचता हू की मैं काश किसी जादू से समय के पीछे जा पाता और उन पलो मे वापस जी सकता जिनमे मेने असन्तोष के कारण उन खुबसूरत लम्हो को नही जीया और कुछ ना कुछ पाने और, और की तलाश मे भटकता रहा। काश मे उन पलो मे जाकर वापस जीऊ और सिर्फ जीऊ, इसके अलावा और कुछ ना सोचू तो शायद आज मुझे खेद नही होता जो मुझे मेरे अन्तिम समय तक रहेगा। और मुझे यह भी पता है की मैं या आप इस असन्तोष से कभी नही बच सकते। हम भविष्य नही देख सकते लेकिन भूतकाल देख सकते है अपनी यादो मे, जो सबसे पीड़ादायक है। आखिर हमे संतोष क्यो नही होता? क्यू हम हमेशा कुछ पाने की लालसा मे, वर्तमान मे चल रही अनमोल चीजो को नजरअंदाज कर देते है, जिससे ना हमे संतोष होता है और ना वो पल मिलते है जो हमने गव दिये। जब हम नादान बालक होते है जिस अवस्था मे हमे कोई समझ नही होती उस समय भी हमे संतोष नही होता, जैसे जब कोई बच्चा किसी खिलौने के लिए रोता है जबकि उसके पास पहले से ही अन्य खिलौने होते है लेकिन वह फिर भी रोता है और उसे पाकर ही चुप होता है, इस समय भी वह संतुष्ट होना चहता है लेकिन क्या वह अब किसी अन्य चीज को पाने के लिये आगे नही रोयेगा ? बेशक रोयेगा और धीरे धीरे जैसे वह बच्चा बडा होता जाएगा उसको महत्वकांक्षी मन प्रबल होता जाएगा। हमारे जीवन मे सिर्फ संतोष का ही तो खेल है वरना हम सब मे किसी मे कोई भेद नही, ना कोई जीतना चहता और ना हारना, ना खुश होना ना ही दुखी। दरअसल इस 60-70 वर्ष की रह गई आयु मे हमारी इच्छाएं सिमट कर रह गई है वरना इन इच्छाओं को पूर्ति के लिये कई जन्म भी कम पड़ेंगे, यह है हमारा महत्वकांक्षी मन। तो आप सोचिये की क्या आप अपने सारे सपनें इस जीवन मे पुरे कर सकते है ? देखा जाए तो हम शापित है इस महत्वकांक्षी मन से। जो उन्हे पुरा करनें के लिए हम कितनो के मन को ठेस पहुचाते है, और अन्त मे सबसे ज्यादा खुद को ही। हम पुरी जिंदगी भागते रह्ते है अपने लिये और अपनो के लिए। पर क्या यह भागना ही हल है? क्या हम इससे अन्त मे सब पा लेते है जिसके लिये हमने इतने त्याग किए? पता है मुझे लगता है जब हमारा शरीर शिथिल पड़ने लगता है तब भी हमारी इछाए ही हमे जीने के लिये प्रोत्साहित करती है और हमारी प्राण वायू तब ही हमारा साथ छोड़ती है जब हम खुद से कह देते है की अब बस हो गया। अन्त मे चाहे हार से ही सही, जब तक हम संतुष्ट नही हो जाते हम आजाद नही हो सकते। इस नर्क से निकलने के लिए सत्य को खोजना बहुत आवश्यक हो गया है, कि आखिर सच क्या है जीवन का। एसे तो धार्मिक ग्रंथो मे अप्ने अपने तरिको से सच की व्याख्या की गई है कि इस मार्ग पर चल्ने से संतोष मिलेगा और सन्तोष से मुक्ति। पर ये धार्मिक ग्रंथ आये कहा से? आंखो से एक बार पटी हटाकर देखे तो पायेंगे की इने किसी इन्सान द्वारा ही लिखे गए है ताकी अराजकता ना फेले और लोगो को सही और गलत की पहचान हो। पर सही क्या और गलत क्या, ये फैसला आखिर किया किसने? विश्व मे कई धर्म है सभी धर्मो मे उन धर्मो के अनुयायी जीते है और अन्त मे उन्ही धर्मो के अनुसार वे दुनिया से विदा लेते है। लेकिन सभी धर्मो के अलग अलग रीति रिवाजों से ही उने मुक्ति मिलेगी एसा क्यो? एसा क्यो है की सब धर्मो मे जन्म से लेकर अन्तिम संस्कार तक सभी रीति रिवाज अलग है और उन्ही के अनुरुप उन अनुययो को पालन करना होता है वरना उने मुक्ति नही मिलेगी, एसा उन धर्मो मे लिखा है। मुझे नही लगता की यह सच है, मेरे लगता है की सब खेल satisfaction का ही है। जैसे व्यक्ति अपने घर आकर ही सुकून पाता है क्योकिं बचपन से अब तक या काफी वर्षो से उसका उस घर से लगाव हो जाता की उसे अपने ही घर मे सुकून मिलता है वैसे ही कई वर्षो से किसी धर्म का अनुयाई बनकर जीवन व्यतीत करना तब अन्त उसी धर्म के अनुसार उसका अन्तिम संस्कार। आपको क्या लग्ता है उसके धर्म मे उस व्यक्ति का अन्तिम संस्कार करना किसकी संतुष्टि है, उस व्यक्ति की!? मेरे मायने मे यह संतुष्टि उन लोगो की है जो अन्तिम संस्कार करते है अथवा जो जीवित है। जैसे पश्चिमी सभ्यता मे लोग मृत व्यक्ति को दफनाने से पहले उस व्यक्ति का श्रिंगार करते है और दफनाने से पहले उसके सामने अपने भाव व्यक्त करते है, तो यहा satisfaction किसका हुआ? उनका जो जीवित है वे लोग एसा इसलिये करते है ताकी उनके मन मे रहे खेद को वे समाप्त कर सके और without regret की life जी सके। तो इसमे उस मृत व्यक्ति का satisfaction कहा है ? कही नही, क्योकि मृत्यु के बाद ना किसी भी तरह का भाव उसके मन मे शेष नही रह्ता, अब वो अप्ने नए जीवन चक्र मे भाग लेने को तेयार है। अगर आप यह सोचते है कि पुन: जीवन चक्र? तो हाँ वापस यही, यही शुरुआत और यही अन्त और उसके बाद भी यही। तो इसका अन्त क्या है ? धार्मिकजन कहेंगे की भगवान की भक्ति ? पर सोचिये की अगर ये सच नही हुवा तो ? भगवान और भक्ति जेसी कोई चीज ना हुई तो ? मैं यह नही कहता की कुछ spiritual नही होता, मैं यह कह रहा हू की सच कुछ और ही है जो शायद किसी को नही पता या यूँ कहे की किसी ने सच तलाश करने की हिम्मत ही नही की, क्योंकि सच ढूँढने की मेहनत कोन करे !!!! हमे आराम से रह्ने की आदत है, कोन नया सच खोजे और कोन उसे उजागर करे। मेरा कह्ना यह है की सच कुछ और ही है और मुझे विश्वास है की एक ना एक दिन सच आयेगा ……….
जरा ठहर जा, कुछ कहना अभी बाकी है, बिछड़ना तो हो गया, एक मुलाकात अभी बाकी है। जिस रोज तुझे जो देखा था, वो कहानी अभी बाकी है, एक मुलाकात अभी बाकी है। रूठने और मनाने की, एक रात अभी बाकी है, एक मुलाकात अभी बाकी है। तीन शब्द हमने भी है, छिपाए सबसे, जिनका सुनना, सुनाना अभी बाकी है। एक मुलाकात अभी बाकी है।
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