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तेरी सुबह, भी ऐसी होती थी

 तेरी सुबह, भी ऐसी होती थी
जो शुरू, मुझी से होती थी।
और सपनो से बिछड़ते ही, ख्याल तुझे जो आता था,
उसका सीधा पथ, ओर मूझी को जाता था।
तब देख मुझे, मुस्कान तुझे जो आती थी, 
मानो तेरे सपनो की, अधूरी अभी कहानी थी।
पर अब, ऐसी सुबह न मेरी होती है,
होती, तो केवल खामोशी है।
जिसे, भेद न पाता कोई शोर है,
रहता, तो केवल मेरा मौन है।
अब भी है, मुझे उस रोज की चाहत,
जब होती थी, तेरे आने की आहट।
जो निश्चय ही, आज नही तो कल होगी,
यहां नहीं, तो वहां होगी।।~२
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