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कल का छिपता सूरज

 

कल का छिपता सूरज,
साक्षी है, उनके अरमानों का।
मुट्ठी भर अपनी दौलत से,
ताकते मुंह दुकानों का।
फटी सिक्कों की पोटली में,
झिझक ही सिर्फ रह जाती है,
थामे नन्हे हाथों को,
वो लौट कई बार आती है।
जब आज के उगते सूरज में,
उसको मनचाहा पाना है,
छोड़ उन नन्हे हाथों को,
उसे लौट कही और जाना है।


Why I Came up with above lines ⚟

Yesterday My bhabhi and sister went to chachi’s house to asking her wellness. Then i saw them to go there from behind and suddenly i remembered of her (my mother) that she was also usually go to the Market at the time of sunset with her partner (my sister) and as same as yesterday. i used to come for close the door and watched them and that time she was fully motivated and happy to get something but the market prices were very high and after lot of struggle without get anything for herself, she came home with 500g fruits for us. so by the incident i came up with a few lines and wrote it down and sharing with you

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